ऑपरेशन सिंदूर पर फिल्म बनाने को लेकर बॉलीवुड में हड़कंप, 30 से ज्यादा टाइटल पंजीकरण की होड़, बिना रिसर्च के मच गई मारामारी।
Race to Film ‘Operation Sindoor’: Bollywood in a Tug of War
बॉलीवुड में “ऑपरेशन सिंदूर” को लेकर खींचतान: बिना कहानी समझे फिल्म बनाने की होड़
बॉलीवुड का इतिहास रहा है कि जब भी देश में कोई बड़ा सैन्य अभियान या राष्ट्रीय घटना होती है, तो निर्माता-निर्देशक उसमें फिल्मी स्कोप देखने लगते हैं। हाल ही में भारतीय सेना द्वारा शुरू किए गए “ऑपरेशन सिंदूर” को लेकर भी कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है।
22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जवाब में भारत ने सात मई को पाकिस्तान और पीओके में कई आतंकी ठिकानों पर मिसाइल हमले किए। इस ऑपरेशन को “ऑपरेशन सिंदूर” नाम दिया गया, जो अब बॉलीवुड के लिए नया ‘हॉट टॉपिक’ बन गया है।
फिल्म बनाने की होड़ में सबसे आगे कौन?
30 से अधिक शीर्षक पंजीकरण के लिए आवेदन
जैसे ही सेना का यह अभियान सामने आया, मुंबई फिल्म इंडस्ट्री के कई प्रोडक्शन हाउस और निर्माता एक्टिव हो गए। भारतीय मोशन पिक्चर प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन (IMPPA), इंडियन फिल्म एंड टेलीविजन प्रोड्यूसर्स काउंसिल (IFTPC) और वेस्टर्न इंडिया फिल्म प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन (WIFPA) को मात्र दो दिनों में 30 से अधिक टाइटल पंजीकरण के आवेदन मिले।
इन टाइटलों में प्रमुख हैं — ऑपरेशन सिंदूर, मिशन सिंदूर, सिंदूर: द रिवेंज, हिंदुस्तान का सिंदूर, सिंदूर का बदला और पहलगाम: द टेरर अटैक।
IMPPA के सचिव अनिल नागरथ के अनुसार, जो पहले आवेदन करता है, उसी को टाइटल आवंटित किया जाता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि यह दौड़ टाइटल हथियाने की है, न कि कहानी गढ़ने की।
बिना रिसर्च, बिना तैयारी: “मैं बनाऊंगा” की होड़
यह पहली बार नहीं है जब किसी सैन्य ऑपरेशन के बाद ऐसी होड़ देखने को मिली हो। इससे पहले उरी सर्जिकल स्ट्राइक के समय भी कुछ ऐसा ही हुआ था। लेकिन इस बार कई फिल्म निर्माताओं ने न तो ऑपरेशन सिंदूर की पृष्ठभूमि को ठीक से समझा है, न उसके संवेदनशील पहलुओं को।
यह रेस उस कहानी को समझे बिना है, जिसमें सैनिकों की जानें गई हैं और जो देश के सुरक्षा तंत्र से जुड़ी गंभीर कार्रवाई है।
सोशल मीडिया पर शुरू हुई बहस: अक्षय बनेंगे हीरो या विक्की?
इस मुद्दे पर सोशल मीडिया पर भी खूब चर्चा हो रही है। कुछ यूजर्स का दावा था कि अक्षय कुमार और विक्की कौशल इस टॉपिक पर फिल्म करने के लिए आपस में भिड़ गए हैं।
बॉलीवुड अभिनेत्री ट्विंकल खन्ना ने टाइम्स ऑफ इंडिया के लिए लिखे अपने कॉलम में बताया कि उन्होंने इन अफवाहों के बारे में जानने के बाद अक्षय को फोन किया। अक्षय ने मजाक में कहा कि वे व्यस्त हैं और पैर में आग लगी है। बाद में पता चला कि वे एक स्टंट सीन के दौरान वाकई चोटिल हो गए थे।
ट्विंकल ने भी लिखा कि अब सच और झूठ में फर्क कर पाना मुश्किल होता जा रहा है, और हर खबर पर शक करना पड़ता है।
क्या यह सब सिर्फ ब्रांडिंग का खेल है?
पहले टाइटल, फिर स्क्रिप्ट
बॉलीवुड में कई बार टाइटल केवल भविष्य की संभावनाओं के लिए बुक किए जाते हैं, चाहे फिल्म बने या न बने। निर्माता पहले से संभावित घटनाओं पर अधिकार पाने की कोशिश करते हैं ताकि किसी और के हाथ में वह विषय न चला जाए।
सवाल उठता है कि क्या यह रचनात्मकता है या सिर्फ ब्रांडिंग की लड़ाई? ऑपरेशन सिंदूर जैसे संवेदनशील अभियान पर फिल्म बनाना गलत नहीं है, लेकिन बिना शोध के, सिर्फ सनसनी फैलाने के लिए ऐसा करना निश्चित रूप से निंदनीय है।
सेना और शौर्य की कहानी बन सकती है प्रेरणा, न कि सनसनी
क्या फिल्में देशभक्ति का माध्यम बनें या मुनाफे का जरिया?
भारत में सेना और उनके अभियानों पर कई प्रेरणादायक फिल्में बनी हैं — बॉर्डर, LOC कारगिल, उरी, शेरशाह जैसी फिल्मों ने देशभक्ति को जन-जन तक पहुँचाया है। लेकिन इन सभी फिल्मों में कम से कम एक मजबूत रिसर्च और संवेदनशीलता का ध्यान रखा गया था।
ऑपरेशन सिंदूर पर भी फिल्म बने, यह अच्छी बात है। लेकिन उसे बनाने वालों को यह समझना होगा कि यह कोई थ्रिलर या मसाला मूवी नहीं, बल्कि सच्ची घटनाओं पर आधारित एक गम्भीर विषय है।
निष्कर्ष: फिल्म बनाइए, पर सोच-समझकर
बॉलीवुड में हो रही यह खींचतान एक बार फिर यह दिखाती है कि कैसे फिल्म इंडस्ट्री किसी भी राष्ट्रीय मुद्दे को तुरंत मुनाफे के अवसर में बदल देती है।
ऑपरेशन सिंदूर पर एक प्रभावशाली, जिम्मेदार और तथ्यात्मक फिल्म जरूर बननी चाहिए, लेकिन यह ज़रूरी है कि वह फिल्म देश के सैनिकों के बलिदान का सम्मान करे, न कि उसे सिर्फ सिनेमाई व्यापार बना दे।
जब तक फिल्म निर्माता रिसर्च, सच्चाई और संवेदनशीलता के साथ स्क्रिप्ट तैयार नहीं करते, तब तक “मैं बनाऊंगा, मैं बनाऊंगा” कहने से देशहित नहीं, केवल निजी लाभ की तस्वीर सामने आती है।
निष्कर्ष रूप में:
ऑपरेशन सिंदूर पर फिल्म बनाने की दौड़ इस बात का प्रतीक है कि किस तरह आज की फिल्म इंडस्ट्री में प्रतिस्पर्धा की जगह जल्दबाज़ी और रिसर्च की जगह अफवाहों ने ले ली है। जनता को चाहिए कि वह भी फिल्मों से पहले तथ्यों को समझे और सतही प्रचार का हिस्सा न बने।
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Author: AK
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