बिहार की राजनीति में अब महिलाओं की नेतृत्वकारी भूमिका अनिवार्य है। केवल संख्या नहीं, अब उन्हें राजनीतिक पटकथा की लेखिका बनना होगा।
It’s Time Women Authored Bihar’s Political Script
“जब भी बिहार की राजनीति की तस्वीर आंखों के सामने आती है, उसमें मंचों पर गरजते पुरुष नेता, पोस्टरों पर बड़े-बड़े चेहरों और भीड़ को संबोधित करते वक्ताओं की छवि उभरती है। लेकिन इस भीड़ में आधी आबादी—महिलाएं—कहां हैं? वे सुनती हैं, नारे लगाती हैं, वोट डालती हैं… लेकिन क्या वे फैसले लेती हैं? क्या वे सत्ता की पटकथा की लेखिका हैं? नहीं। और अब यही ‘नहीं’ बदलना चाहिए, क्योंकि अगर लोकतंत्र का भविष्य समावेशी होना है, तो बिहार की राजनीति में महिलाओं की निर्णायक मौजूदगी अब टालने योग्य नहीं रही।”
प्रस्तावना: एक अदृश्य मौजूदगी जो अब दिखनी चाहिए
बिहार की राजनीति में महिलाओं की भागीदारी की बातें दशकों से हो रही हैं, लेकिन नेतृत्व की असल कुर्सियों पर अब भी पुरुषों का वर्चस्व बना हुआ है। उम्मीदवार सूची से लेकर मंचों की भाषणबाज़ी तक और रणनीति कक्षों से लेकर फैसलों की मेज़ों तक, महिलाएं अक्सर सिर्फ दर्शक की भूमिका में रही हैं, लेखक या निर्णायक की नहीं। पंचायतों में 50% आरक्षण होने के बावजूद जब बात विधानसभा या लोकसभा की आती है, तो महिलाओं की उपस्थिति न के बराबर होती है। सवाल यह नहीं है कि महिलाएं सक्षम हैं या नहीं, सवाल यह है कि उन्हें अवसर कब मिलेगा? अब वक्त आ गया है जब बिहार की राजनीतिक पटकथा की लेखिका महिलाएं हों।
बिहार में महिलाओं की वर्तमान राजनीतिक स्थिति
बिहार में पंचायती राज के तहत महिलाओं को 50% आरक्षण मिला हुआ है, जिससे हजारों महिलाएं मुखिया, वार्ड सदस्य, जिला परिषद सदस्य बनी हैं। लेकिन जब हम विधानसभा या संसद में उनकी उपस्थिति की बात करते हैं, तो यह तस्वीर बेहद असमान है।
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में 243 सीटों में से केवल 26 महिलाएं विधायक बनीं। यह महज 10.7% की भागीदारी दर्शाता है। जबकि राज्य की जनसंख्या में महिलाएं लगभग 48% हैं।
यह अंतर सिर्फ एक आंकड़ा नहीं, बल्कि राजनीतिक प्रतिनिधित्व के उस खाई का प्रतीक है, जो सत्ता और महिलाओं के बीच बनी हुई है।
महिला भागीदारी: सिर्फ संख्या नहीं, नेतृत्व चाहिए
राजनीति में महिला भागीदारी का मतलब केवल कुछ महिला उम्मीदवार उतारना नहीं है, बल्कि उन्हें निर्णायक भूमिकाओं में लाना है।
नेतृत्व का मतलब है नीति बनाना, संगठन की दिशा तय करना, और जनसमस्याओं पर प्राथमिकता तय करना।
महिलाओं को सिर्फ चुनाव लड़ने वाली ‘फेस’ नहीं बल्कि ‘थिंक टैंक’ का हिस्सा भी बनाना होगा।
आज भी कई दल महिलाओं को चुनावी टिकट देने से कतराते हैं, और अगर टिकट मिलता भी है तो अक्सर हारने वाली सीटों पर, जिससे उनकी जीत की संभावना बहुत कम हो जाती है।
राजनीतिक दलों की नीति में महिलाएं कहां हैं?
बिहार के प्रमुख दलों – राष्ट्रीय जनता दल (राजद), जनता दल यूनाइटेड (जदयू), भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), और कांग्रेस – सभी ने अपने घोषणापत्रों में महिला सशक्तिकरण की बात की है।
लेकिन जब उम्मीदवारों की सूची सामने आती है, तो महिलाओं को वाजिब स्थान नहीं मिलता।
उदाहरण के लिए, 2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने सिर्फ 13 महिलाओं को टिकट दिया, राजद ने 20, जदयू ने 19, और कांग्रेस ने मात्र 10 महिलाओं को मैदान में उतारा।
Women empowerment Bihar जैसे नारों को सिर्फ पोस्टरों तक सीमित नहीं रहना चाहिए।
ग्रासरूट से लेकर विधानसभा तक महिलाएं
ग्रामीण बिहार में लाखों महिलाएं हर दिन पंचायतों, स्वयं सहायता समूहों, स्कूल प्रबंधन समितियों और आंगनवाड़ी केंद्रों में अपनी नेतृत्व क्षमता का परिचय देती हैं।
बिहार महिला राजनीति की असली ताकत इन्हीं जमीनी नेताओं में छिपी है, जो संसाधनों की कमी के बावजूद गांव की समस्याओं को सुलझाती हैं।
अब समय आ गया है कि इन्हीं grassroots नेताओं को ऊपर लाया जाए—विधानसभा, विधान परिषद और लोकसभा तक। अगर पंचायत की एक महिला मुखिया गांव चला सकती है, तो वह राज्य भी चला सकती है।
शिक्षा, पंचायत और नेतृत्व: महिलाओं की भूमिका
पिछले दशक में महिला शिक्षा दर में वृद्धि ने उनके आत्मविश्वास और सामाजिक भागीदारी को नई ऊर्जा दी है।
पंचायत चुनावों में भाग लेकर महिलाएं राजनीतिक तंत्र को समझ रही हैं, अनुभव ले रही हैं। लेकिन यह अनुभव राज्यस्तरीय राजनीति में उपयोग नहीं हो पा रहा।
महिला शिक्षिका, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, नर्सें और समाजसेविकाएं अपनी मेहनत और नेतृत्व क्षमता से पूरे बिहार को संबल दे रही हैं। लेकिन जब उन्हें विधायक या सांसद बनाने की बात आती है, तब उन्हें ‘अयोग्य’ बताकर दरकिनार कर दिया जाता है।
क्यों जरूरी है बिहार में महिलाओं का नेतृत्व?
- समावेशी नीतियां: महिला नेता अक्सर स्वास्थ्य, शिक्षा, पोषण और घरेलू हिंसा जैसे मुद्दों को प्राथमिकता देती हैं, जो समाज के समग्र विकास में सहायक हैं।
- भ्रष्टाचार में कमी: कई अध्ययनों से यह सिद्ध हुआ है कि महिला नेतृत्व वाले पंचायतों में भ्रष्टाचार की संभावना कम रहती है।
- सामाजिक समरसता: महिलाएं जाति और धर्म से ऊपर उठकर काम करने की प्रवृत्ति रखती हैं, जिससे सामाजिक समरसता को बल मिलता है।
- नई राजनीतिक संस्कृति: महिला नेतृत्व एक सौम्य, संवादधर्मी और सहनशील राजनीतिक संस्कृति को जन्म दे सकता है, जिसकी आज जरूरत है।
बिहार की राजनीति में महिला रोल मॉडल्स
बिहार की राजनीति में कुछ महिला चेहरों ने मिसाल कायम की है:
- रवींद्र देवी: पहली महिला विधायक जो 1952 में चुनी गईं।
- पुत्री श्रीमती रेनू देवी: भाजपा की डिप्टी सीएम बनीं, जिन्होंने महिला सशक्तिकरण पर खुलकर बात की।
- अनिता देवी: कई बार मंत्री रहीं और महिलाओं के बीच लोकप्रिय चेहरा बनीं।
हालांकि ये नाम गिने-चुने हैं, लेकिन इनसे यह प्रमाणित होता है कि अगर मौका मिले तो महिलाएं किसी भी मोर्चे पर पीछे नहीं हैं।
समाधान और आगे की राह
- 50% आरक्षण की मांग: बिहार की विधानसभा और लोकसभा में महिलाओं के लिए 50% सीटें आरक्षित की जानी चाहिए।
- प्रशिक्षण और नेतृत्व विकास कार्यक्रम: युवतियों और महिला नेताओं को प्रशिक्षण देकर नेतृत्व के लिए तैयार करना होगा।
- दल-स्तरीय महिला विंग को सशक्त करें: सिर्फ नाम मात्र की महिला इकाइयों से कुछ नहीं होगा। उन्हें रणनीति, फंडिंग और निर्णयों में भागीदारी मिलनी चाहिए।
- मीडिया और समाज की भूमिका: मीडिया को भी महिलाओं की सफलता की कहानियों को प्रमुखता से दिखाना चाहिए, जिससे समाज की सोच बदले।
निष्कर्ष: अब और इंतज़ार नहीं
Bihar women in politics को अब प्रतीक नहीं, प्रक्रिया बनाना होगा।
महिलाएं केवल रैली की भीड़ नहीं, बल्कि मंच की आवाज बनें। वे केवल पोस्टर की तस्वीर नहीं, बल्कि घोषणापत्र की लेखिका बनें।
राजनीतिक दलों को भी यह समझना होगा कि महिला नेत्रत्व केवल मजबूरी नहीं, मजबूती है।
अब वक्त आ गया है जब बिहार की राजनीति को महिला दृष्टिकोण, संवेदना और नेतृत्व की ज़रूरत है।
बिहार की अगली राजनीतिक पटकथा अब महिलाओं के हाथों से ही लिखी जानी चाहिए।
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Author: AK
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