
भारत की ‘हरित क्रांति’ के जनक एमएस स्वामीनाथन का 98 साल की उम्र में गुरुवार दोपहर 11:20 पर चेन्नई में निधन हो गया है। स्वामीनाथन को भारत में हरित क्रांति का जनक माना जाता है। उनका जन्म 7 अगस्त, 1925 को हुआ था। उनका पूरा नाम मनकोम्बु संबासिवन स्वामिनाथन था। उन्होंने देश में गेहूं और चावल में नए प्रयोग किए और नई किस्म की बेहतरीन पहचान की। उनके परिवार में उनकी पत्नी मीना और तीन बेटियां सौम्या, मधुरा और नित्या हैं। स्वामीनाथन ने धान की ज्यादा पैदावार देने वाली किस्मों को डेवलप करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिली कि भारत के कम आय वाले किसान ज्यादा फसल पैदा करें। स्वामीनाथन को 1971 में रेमन मैग्सेसे और 1986 में अल्बर्ट आइंस्टीन वर्ल्ड साइंस अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था। एमएस स्वामीनाथन ने सबसे पहले गेहूं की एक बेहतरीन किस्म की पहचान की। ये मैक्सिकन गेहूं की एक किस्म थी। उनके इस कदम के बाद भारत में भुखमरी की समस्या खत्म हुई। गेहूं उत्पादन में भारत आत्मनिर्भर बना। यही वजह है कि स्वामीनाथन को हरित क्रांति का जनक माना जाता है। स्वामीनाथन की पहल के बाद हरित क्रांति के तहत देशभर के किसानों गेहूं और चावल के ज्यादा उपज वाले बीज लगाना शुरू किए। खेती में आधुनिक उपकरणों का इस्तेमाल होना शुरू हुआ। वैज्ञानिक विधियों से खेती होना शुरू हुई। इसी का नतीजा था कि दुनिया का सबसे ज्यादा खाद्यान्न की कमी वाला देश महज 25 सालों में इस कलंक से उबरकर आत्मनिर्भर बन गया। आज हम दूसरे देशों को गेहूं और चावल निर्यात करते हैं। इस क्रांति का श्रेय एमएस स्वामीनाथन को जाता है। उन्हें कृषि और विज्ञान के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए 1967 में ‘पद्म श्री, 1972 में ‘पद्म भूषण और 1989 में ‘पद्म विभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
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