Sun, December 10, 2023

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भारतीय राजनीति के बीच में फंसे भगत सिंह और सावरकर आखिर कब तक अपनी रिहाई की दुआएं मांगते रहेंगे

Controversy between Bhagat Singh and Savarkar
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नई दिल्ली, 23 जुलाई। आम आदमी पार्टी वर्जेस भाजपा। कल का पूरा दिन दिल्ली में यही होता रहा। एक तरफ केजरीवाल और उनके विधायक लगातार प्रेसवार्ता कर भाजपा और केंद्र सरकार पर आरोप लगाते रहे। इस कड़ी में दिल्ली के उपराज्यपाल वी के सक्सेना भी आ गए जिनका आना शायद लोकतंत्र पर एक सवालिया निशान है क्योंकि एक संवैधानिक पद पर बैठा शख्स कैसे राजनीतिक पार्टियों के आरोप-प्रत्यारोप में दोषी हो जाता है। वही दूसरी तरफ भाजपा की ओर से केंद्रीय मंत्री मीनाक्षी लेखी और दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष आदेश गुप्ता ने केजरीवाल पर एक्साइज पॉलिसी के नाम पर भ्रष्टाचार करने का आरोप लगा दिया। लेकिन कल अरविंद केजरीवाल ने प्रेसवार्ता कर खुद को भगत सिंह तो भाजपा नेताओं को सावरकर की औलाद कह दिया। जिसके बाद खूब बवाल हुआ। पहले इसे समझते हैं कि आखिर सावरकर और भगत सिंह की एंट्री कैसे हो गई?

दरअसल जब नई पॉलिसी दिल्ली में लागू की गई तो उस वक़्त खूब हंगामा हुआ। भाजपा ने लगातार कई दिनों तक महिला संगठनों एवं आरडब्ल्यूए के सदस्यों के माध्यम से ठेके के बाहर खूब जोरदार प्रदर्शन भी किया। लेकिन केजरीवाल सरकार ने अपने वायदों के मुताबिक प्रत्येक वार्ड में तीन-तीन ठेके खोलने का काम जारी रखा। इसके बाद जब कुछ ठेके खुल गए तो उसके बाद इसमें कई तरह के कथाकथित आरोप लगे। जैसे नए नवेले राज्यसभा सांसद बने राघव चड्ढा के ऊपर आरोप लगे कि उनके चाचा ने एक ही लाइसेंस पर कई शराब के ठेके खोले हैं। फिर यह भी आरोप लगाए गए कि शराब माफियाओं से मोटी रकम वसूल की गई और ठेके खुलवाने के पीछे केजरीवाल सरकार ने 5000 करोड़ रुपए का घोटाला किया है।

इन्ही सब आरोपों को आधार बनाकर और शराब के ठेके खुलने में मास्टर प्लान का उलंघन होने जैसी बातें कहकर एक शिकायत उपराज्यपाल को कर दी गई। शुक्रवार को उपराज्यपाल ने इस पूरे मसले को सीबीसीआई से जांच कराने के लिए आदेश जारी कर दिए। जिसके बाद केजरीवाल ने प्रेसवार्ता कर कहा कि अब हमारे देश के अंदर एक नया सिस्टम लागू किया गया है। पहले यह तय किया जाता है कि किस आदमी को जेल भेजना है और फिर उसके खिलाफ एक मनगढ़ंत झूठा केस बनाया जाता है। मनिष सिसोदिया इसी सिस्टम के शिकार होने वाले हैं क्योंकि उन्हें जरूर सीबीआई गिरफ्तार करने वाली है, लेकिन हम डरने वालो में नहीं है। हम वीर भगत सिंह को अपना आदर्श मानते हैं जो अंग्रेजों के सामने झुकने की बजाय हंसते हंसते फांसी पर लटक गए लेकीन माफ़ी नहीं मांगे। लेकिन भाजपा वाले सावरकर को मानते हैं वही सावरकर जो अंग्रेजों के सामने झुक गया था।

केजरीवाल के जवाब में केंद्रीय मंत्री मीनाक्षी लेखी ने दिल्ली सरकार से कई सवाल पूछ डाले। उन्होंने कहा कि केजरीवाल ये बताएं कि 25 अक्टूबर 2021 को एक्साइज विभाग ने नोटिस दिया था उन कंपनियों को, जिनको शराब के लाइसेंस दिए गए थे। इस मामले में क्या कार्रवाई हुई? 14 जुलाई 2022 को बिना कैबिनेट नोट और कानूनी प्रक्रिया पास के जल्दबाजी में 144.36 करोड़ रुपये की छूट उन्हीं कंपनियों को बिना कानून का पालन किए दी गई? इतना ही नहीं विदेशी अल्कोहल पर बिना किसी अप्रुवल के और बिना उपराज्यपाल की अनुमति लिए 50 रुपये प्रति बोतल पर जो छूट दी गई उससे दिल्ली के टैक्स प्रेयर्स का नुकसान हुआ। जबकि एक ब्लैक लिस्टेड कंपनी को ठेके किस आधार पर दिए गए इस बात का विवरण भी केजरीवाल को दिल्लीवासियों के सामने रखना चाहिए।

एक्साइज पॉलिसी पर उठाए गए सवालों का जवाब या तो केजरीवाल और उनके मंत्री दे देंगे या मनीष सिसोदिया के घर के सामने आज भाजपा अपने विरोध प्रदर्शन करके पूछ लेगी लेकिन इस सवाल का जवाब चाहिए कि आखिर देश में स्वतंत्रता सेनानियों की यही विसात रह गई हैं कि किसी भी मुद्दे पर अगर राजनेताओं को अपने आप का परिचय देना हो तो वह स्वतंत्रता सेनानियों के नामो का सहारा लें। ऐसा नहीं है कि यह पहली बार हुआ है जब किसी राजनीतिक पार्टी द्वारा इन दोनों के नाम को उछाला गया है। बल्कि इससे पहले भी कई बार स्वतंत्रता सेनानियों के नाम पर राजनीति करने की कोशिश की गई है।

साल 2020 में बंगलुरू में येलहंका फ्लाईओवर का नाम सावरकर के नाम पर रखने पर खूब बवाल हुआ था। सिद्धारमैया जो नेता प्रतिपक्ष हैं उन्होंने कहा था कि यह जल्दबाजी में लिया गया फैसला इस बात का सबूत है कि प्रशासन एक चुनी हुई सरकार द्वारा नहीं, बल्कि पर्दे के पीछे के लोगों द्वारा चलाया जाता है। इसके ठीक विपरीत सांसद गैतम गम्भीर ने केजरीवाल को भगत सिंह के नाम राजनीति करने वाले बेशर्म बता दिया। मतलब राजनीति के नाम पर सावरकर और भगत सिंह भी खुद को सोच रहे होंगे कि जिस भारत का सपने देखते-देखते वे फांसी पर भी लटकने से पीछे नहीं हटे, आज उसी भारत में उनके नाम पर राजनीतिकरण हो रही है।

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