Thu, December 7, 2023

DW Samachar logo
Search
Close this search box.

National Sports Day: Remembering The Wizard of Hockey “Major Dhyan Chand”

National Sports Day: Remembering The Wizard of Hockey "Major Dhyan Chand"

देश में हॉकी के ‘स्वर्णिम युग’ की शुरुआत करने वाले मेजर ध्यानचंद का जादू दुनिया भर में छाया

National Sports Day: Remembering The Wizard of Hockey “Major Dhyan Chand”

खिलाड़ियों के लिए आज खेल का सबसे बड़ा ‘त्योहार’ है। इसके साथ आज उन देशवासियों के लिए बहुत ही खास दिन है जो किसी न किसी खेल से जुड़े रहे हैं। आज 29 अगस्त को पूरे देश में ‘राष्ट्रीय खेल दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। इस मौके पर खेल के साथ उस महान खिलाड़ी की भी चर्चा होगी जिन्होंने अपने शानदार खेल की बदौलत देश में एक ‘स्वर्णिम युग’ भी शुरू किया था। इसी महीने संपन्न हुए टोक्यो ओलिपिक में भारत के खिलाड़ियों के शानदार प्रदर्शन करने के बाद पूरा देश उत्साहित है। इस ओलंपिक में जैवलिन थ्रो में ‘गोल्ड मेडल’ जीतने वाले नीरज चोपड़ा ने इस बार खेल दिवस का महत्व और बढ़ा दिया है। ‘देशवासी इस दिन उन खिलाड़ियों को आदर और सम्मान के साथ याद करते हैं जिन्होंने अपने शानदार खेल दिखाते हुए हमारे देश का नाम पूरे दुनिया में रोशन किया’। ऐसे होनहार भारतीय खिलाड़ियों की लिस्ट बहुत लंबी है, जिन्होंने अपने बल पर खेल के साथ देश का ‘मान’ बढ़ाया। लेकिन आज खेल के त्योहार पर हम बात करेंगे भारत के राष्ट्रीय खेल ‘हॉकी’ की। हॉकी की चर्चा जब चलती है तब महान खिलाड़ी जादूगर मेजर ध्यानचंद याद आते हैं। बता दें कि ‘भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस हॉकी के जादूगर ध्यानचंद के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में ही मनाया जाता है’। ध्यानचंद अपने ‘दद्दा’ के नाम से भी मशहूर थे। खेल दिवस के मौके पर पूरा देश अपने महान खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद और उनके खेल में दिए गए योगदान को याद कर रहा है। इस बार टोक्यो ओलंपिक में हमारे हॉकी खिलाड़ियों ने 41 साल बाद ‘कांस्य पदक’ जीतकर मेजर ध्यानचंद को श्रद्धांजलि दी है। बात को आगे बढ़ाते हुए आपको ‘अतीत’ में लिए चलते हैं। हमारा देश जब अंग्रेजों की गुलामी में ‘जकड़ा’ हुआ था। उस कालखंड में हम खेलों को लेकर राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत पीछे थे। साल 1905 में उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (इलाहाबाद) में जन्मे ध्यानचंद ने हॉकी के खेल को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ‘बुलंद’ कर दिया। इलाहाबाद में पैदा होने वाले ध्यानचंद की कर्मस्थली झांसी रहा। भारत में हॉकी के स्वर्णिम युग के साक्षी मेजर ध्यानचंद का नाम भी ऐसे ही लोगों में शुमार है। उन्होंने अपने खेल से भारत को ओलिंपिक खेलों की हॉकी स्पर्धा में स्वर्णिम सफलता दिलाने के साथ ही परंपरागत एशियाई हॉकी का दबदबा कायम किया। इसके बावजूद देश में उन्हें ‘भारत रत्न’ सम्मान न मिल पाने पर उनके प्रशंसकों को मलाल है।

भारतीय सेना में शामिल होने वाले ध्यानचंद हॉकी के लिए ही बने थे–

मेजर ध्यानचंद हॉकी खेल के लिए ही बने थे। उन्होंने 16 साल की उम्र में भारतीय आर्मी ज्वाइन की थी। ध्यानचंद 1922 में एक सैनिक के रूप में भारतीय सेना में शामिल हुए। वह शुरुआत से एक खिलाड़ी थे। उन्हें हॉकी खेलने के लिए सूबेदार मेजर तिवारी से प्रेरणा मिली, जो खुद एक खेल प्रेमी थे। ध्यानचंद ने उन्हीं की देखरेख में हॉकी खेलना शुरू किया। ध्यानचंद के गोल करने की काबिलियत जबरदस्त थी। उनके टीम में रहते भारत ने हॉकी में तीन ओलंपिक गोल्ड मेडल (1928, 1932 और 1936) अपने नाम किए थे। उनके करिश्माई खेल से पूरी दुनिया में भारत का ‘डंका’ बजने लगा। जर्मनी के ओलंपिक में खेला गया हॉकी का फाइनल मैच दद्दा की खेल की वजह से दुनिया आज भी भूल नहीं पाई है। बर्लिन ओलंपिक के हॉकी का फाइनल भारत और जर्मनी के बीच 14 अगस्त 1936 को खेला जाना था। लेकिन उस दिन लगातार बारिश की वजह से मैच अगले दिन 15 अगस्त को खेला गया। बर्लिन के हॉकी स्टेडियम में उस दिन 40 हजार दर्शकों के बीच जर्मन तानाशाह हिटलर भी मौजूद था। हाफ टाइम तक भारत एक गोल से आगे था। इसके बाद ध्यानचंद ने अपने स्पाइक वाले जूते निकाले और खाली पांव कमाल की हॉकी खेली। इसके बाद तो भारत ने एक के बाद एक कई गोल दागे। भारत ने उस फाइनल में जर्मनी को 8-1 से करारी मात दी। इसमें तीन गोल ध्यानचंद ने किए। वहीं इसके अलावा भारत ने 1932 के ओलंपिक के दौरान अमेरिका को 24-1 और जापान को 11-1 से हराया। ध्यानचंद ने उन 35 गोलों में से 12, जबकि उनके भाई रूप सिंह ने 13 गोल दागे। यहां हम आपको बता दें कि दद्दा 22 साल तक भारत के लिए खेले और 400 अंतरराष्ट्रीय गोल किए। कहा जाता है कि जब वो खेलते थे, तो मानो गेंद स्टिक पर चिपक जाती थी। हॉलैंड में एक मैच के दौरान ‘चुंबक’ होने की आशंका में उनकी स्टिक तोड़कर देखी गई। जापान में भी एक मैच के दौरान उनकी स्टिक में गोंद लगे होने की बात भी कही गई। उनकी हॉकी स्टिक से बॉल चिपक जाती है। जब वह बॉल लेकर आगे निकलते तो हॉकी में बॉल ऐसे चलती थी, जैसे चिपक गई हो, इसलिए उन्हें हॉकी का ‘जादूगर’ कहा जाता था।

हॉकी जगत में ध्यानचंद का नाम दुनिया भर में सम्मान के साथ लिया जाता है–

विपक्षी खिलाड़ियों के कब्जे से गेंद छीनकर बिजली की तेजी से दौड़ने वाले दद्दा के दीवाने उस दौरान कई देशों के राष्ट्राध्यक्ष भी थे। ‘स्टेडियम में हॉकी के जादूगर को देखने के लिए प्रशंसकों की भारी भीड़ जुटती । ‌उनका शुमार दुनिया में हॉकी के सबसे बेहतरीन खिलाड़ियों में होता है’। उनका ‘जादू’ दशकों बाद भी बरकरार है और वह आज भी भारत के सबसे बड़े खेल ‘आइकन’ में से एक हैं। हॉकी जगत में उनका नाम देश और दुनिया में बहुत सम्मान से लिया जाता है। इसी दिन हर साल खेल में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए खेल रत्न के अलावा अर्जुन और द्रोणाचार्य पुरस्कार दिए जाते हैं। भारत सरकार ने ध्यानचंद को 1956 में देश के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी महीने भारत के सर्वोच्च खेल सम्मान खेल रत्न पुरस्कार का नाम राजीव गांधी खेल रत्न से हटाकर, मेजर ध्यानचंद खेल रत्न कर दिया है। भारतीय हॉकी टीमों के टोक्यो ओलंपिक में शानदार प्रदर्शन के बाद इस सम्मान का नाम महान हॉकी खिलाड़ी के नाम पर रखने का फैसला लिया गया। ध्यानचंद का 3 दिसंबर 1979 को दिल्ली में निधन हो गया । उत्तर प्रदेश के झांसी में उनका अंतिम संस्कार उसी मैदान पर किया गया, जहां वे हॉकी खेला करते थे। राष्ट्रीय खेल दिवस और मेजर ध्यानचंद के जन्म दिवस पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, विपक्ष के नेता और कांग्रेस के सांसद राहुल गांधी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी समेत तमाम सत्ता पक्ष और विपक्ष के नेताओं ने देशवासियों को शुभकामनाएं दी है।

Relates News